रविवार, 28 जून 2015

ज़िन्दगी -- एक पहेली

जीवन एक ऐसी पहेली है जिसका अर्थ जितना भी ढूँढो उतना ही रहस्यमय लगता है। जब हमें ऐसा प्रतीत होता है कि सारे समाधान हमारे सामने हैं तभी ऐसा कुछ हो जाता है जो हमें झकझोर के रख देता है। मैंने अपने अनुभव से देखा है कि रोग और मृत्यु बिना बताये ऐसे समय पर दस्तक देते हैं जब आपको उनकी अपेक्षा बिलकुल भी नहीं होती। फिर झक्क मारकर आपको अपनी पूरी क्षमता के साथ उनसे जूझना पड़ता है। कभी आप उसपर भारी पड़ते हैं  तो कभी वह आप पर। इसी तरह जीवन का चक्र चलता रहता है।

समाचार पत्र उठाकर  पढ़िए तो ऐसा प्रतीत होता है कि ज़िन्दगी एक जुआं है और हम सब उसपर बिछी बिसात पर दौड़ते मोहरे। कब, किस क्षण क्या होगा शायद कोई नहीं जानता।  हाँ भले ही हम कितनी ही योजनाएँ बनाये  परन्तु आपको ऐसा नहीं लगता कि जीवन की बड़ी घटनाएँ हमारे वश से परे हैं। सोच कर देखिये आपका पहला प्यार, आपका जीवनसाथी, आपके सबसे घनिष्ट मित्र, आपके प्रियजन, आपकी जीविका, आपके बच्चे और उनका भविष्य -- सब काफी हद तक आपकी गिरफ्त में है ही नहीं। सोचकर निराशा होती है और आश्चर्य भी।

कभी कभी मेरा मन उचट जाता है दुनिया में इस नाइंसाफी को देखकर। जो अच्छे हैं वे तिल तिल कर जी रहे हैं। पापी, धूर्त और निर्दयी सुख की लम्बी आयु जी रहे हैं। क्या अर्थ है इस जीवन का? क्या पुस्तकों में लिखी शिक्षा और बातें व्यर्थ हैं। क्या पाप और पुण्य, सच और झूठ, अच्छाई और बुराई सिर्फ कोरी बातें हैं जिनसे हम मन बहला रहे हैं? इन प्रश्नों के उत्तर मेरे पास तो है नहीं और शायद मैं उन्हें खोज भी नहीं रहीं हूँ। बस जीवन के इतने बड़े धरातल पर अपने उसूलों और मूल्यों को साथ लेकर अपनी छोटी सी भूमिका निभा रही हूँ।

आप सोच रहे होंगे कि मैं ऐसी निराशावादी बातें क्यों कर रही हूँ। अनुभव कहे या प्रतिदिन के चिंतन| 

5 टिप्‍पणियां:

  1. हम जब अपने आस पास या अपने व अपने स्वजनों के जीवन में घट रही परिस्थितियों को देखते हैं तो ऐसे ख्याल आना स्वाभाविक ही है। पर महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि ऐसा क्यों है। और कुछ नहीं पर बस इतना समझ पायी हूँ कि मनुष्य की बहुत ही संकीर्ण नज़र से जो हम देखते हैं वो सत्य का तिन भर भी नहीं है। शायद इसीलिए हम विचलित हो उठते हैं।

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  2. sab moh maaya ka jaal hai, aur kuch nahi
    mera google transliteration tool shayad disable ho gaya hai
    system restart karna padega
    isliye aaj ka comment hindi mein hote huye bhi hindi mein nahi hai
    asuvidha ke liye khed
    :P

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  3. आपका यह चिंतन आजकल की भागदौड़ और उलझनों से भरे जीवन में स्वाभाविक है,

    इसी के सन्दर्भ में निम्न चर्चा को पढना उपयोगी होगा.

    क्यों बिगड़ जाते है काम, क्यों विपरीत लगती है परिस्थितियां?
    http://www.hindiinternet.com/2015/02/blog-post_97.html

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  4. You are right. We all go through similar things..experience and introspection leads to these and anyways nothing great is happening..

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  5. Sirf chintan Hi nahi ye manthan bhi hai Rachna isliye nirashawadi nahi hai ..bas yatharth hai...

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आपके बहुमूल्य विचारों और प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा है.