गुरुवार, 20 जुलाई 2017

नींद

मैं लेटी थी बिस्तर पर करवटें बदलते हुए |
पति के ख़र्राटे और घड़ी की टिक टिक मुझे विचलित कर रहे थे |
कल सुबह जल्दी भी उठना है सोंचकर मेरा मन और भी चिंतित था |
नींद क्यों कोसों दूर थी निगाहों से?

परेशान होकर मैं बिस्तर से उठी |
घर में घुप्प अँधेरा था |
चाँदनी खिड़की के रास्ते कमरे में हल्का उजाला फैलाये हुए थी |
दबे पाँव उठकर नीचे वाले कमरे में आयी |


बाहर गहरा सन्नाटा था |
पत्तों के हिलने की आवाज़ डरावनी लग रही थी |
बिजली जलाई |
सोफे पर रीडर्स डाइजेस्ट पड़ी हुई थी |
एक घंटा कब गुज़रा, पता भी ना चला |

अब थोड़ी नींद आने लगी थी |
सामने घड़ी देखी, रात के दो बज रहे थे |
गले में दुपट्टा ओढ़कर बिस्तर पर लेटी |
लेटते ही शायद नींद आ गयी |

चार घंटे बाद मोबाइल के अलार्म से नींद खुली |
झक्क मारकर बिस्तर से उठी |
काश कि थोड़ा और सो पाती |
ऐ खाँसी, तुम कब जाओगी ?

रविवार, 28 जून 2015

ज़िन्दगी -- एक पहेली

जीवन एक ऐसी पहेली है जिसका अर्थ जितना भी ढूँढो उतना ही रहस्यमय लगता है। जब हमें ऐसा प्रतीत होता है कि सारे समाधान हमारे सामने हैं तभी ऐसा कुछ हो जाता है जो हमें झकझोर के रख देता है। मैंने अपने अनुभव से देखा है कि रोग और मृत्यु बिना बताये ऐसे समय पर दस्तक देते हैं जब आपको उनकी अपेक्षा बिलकुल भी नहीं होती। फिर झक्क मारकर आपको अपनी पूरी क्षमता के साथ उनसे जूझना पड़ता है। कभी आप उसपर भारी पड़ते हैं  तो कभी वह आप पर। इसी तरह जीवन का चक्र चलता रहता है।

समाचार पत्र उठाकर  पढ़िए तो ऐसा प्रतीत होता है कि ज़िन्दगी एक जुआं है और हम सब उसपर बिछी बिसात पर दौड़ते मोहरे। कब, किस क्षण क्या होगा शायद कोई नहीं जानता।  हाँ भले ही हम कितनी ही योजनाएँ बनाये  परन्तु आपको ऐसा नहीं लगता कि जीवन की बड़ी घटनाएँ हमारे वश से परे हैं। सोच कर देखिये आपका पहला प्यार, आपका जीवनसाथी, आपके सबसे घनिष्ट मित्र, आपके प्रियजन, आपकी जीविका, आपके बच्चे और उनका भविष्य -- सब काफी हद तक आपकी गिरफ्त में है ही नहीं। सोचकर निराशा होती है और आश्चर्य भी।

कभी कभी मेरा मन उचट जाता है दुनिया में इस नाइंसाफी को देखकर। जो अच्छे हैं वे तिल तिल कर जी रहे हैं। पापी, धूर्त और निर्दयी सुख की लम्बी आयु जी रहे हैं। क्या अर्थ है इस जीवन का? क्या पुस्तकों में लिखी शिक्षा और बातें व्यर्थ हैं। क्या पाप और पुण्य, सच और झूठ, अच्छाई और बुराई सिर्फ कोरी बातें हैं जिनसे हम मन बहला रहे हैं? इन प्रश्नों के उत्तर मेरे पास तो है नहीं और शायद मैं उन्हें खोज भी नहीं रहीं हूँ। बस जीवन के इतने बड़े धरातल पर अपने उसूलों और मूल्यों को साथ लेकर अपनी छोटी सी भूमिका निभा रही हूँ।

आप सोच रहे होंगे कि मैं ऐसी निराशावादी बातें क्यों कर रही हूँ। अनुभव कहे या प्रतिदिन के चिंतन| 

मंगलवार, 16 जून 2015

कुछ बातें

कितना अजीब है हिंदी में लेखन करना। बार बार देखना कि सही तरीके से लिखा है की नहीं, मात्राएँ ठीक हैं कि नहीं। :) जब मैंने अपना पहला ब्लॉग लिखा हिंदी में तो अगले दिन घर में सबको पढ़ने को कहा। मेरे छोटे बेटे ने पहले तो हैरत से पूछा की हिंदी में टाइप कैसे करते हैं? जब मैंने उसे दिखाया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। पर इतनी सारी पंक्तियों को देखकर उसने पढ़ने से सख्त इंकार कर दिया। जैसा कि आप लोग समझ ही गए होंगे की हिंदी उसका सर्वप्रिय विषय है। :) हिंदी में पढ़ना उसे बहुत कठिन लगता है।

बड़ा बेटा  थोड़ा खीजा लेकिन उसने पूरा ब्लॉग पढ़ा। मैं सारे समय उसका उच्चारण सुधारती रही। मुझे लगता है कि अगली बार वह मेरे सामने पढ़ने की गलती नहीं करेगा। वैसे हिंदी उसका भी सर्वप्रिय विषय है। पता नहीं ये बच्चे अंग्रेजी के अलावा और किसी भाषा से उतना प्रेम क्यों नहीं करते। शायद बचपन से अंग्रेजी में पढ़ने और सोचने का अभ्यास ज़्यादा है। वैसे मैंने अपने दोनों ही बच्चों से हिंदी में ही शुरू से बात चीत की है ताकि वे हिंदी घर पर ही सीखें। दोनों ही हिंदी अच्छी तरह से बोल लेते हैं। दक्षिण भारत में रहने के कारण उनके कई हिंदी के अधयापकों का उच्चारण उतना शुद्ध नहीं है जो शायद उनकी भाषा में भी थोड़ा झलकता होगा। आप जहाँ रहते हैं, उस जगह की छाप आपकी बात चीत में होना स्वाभाविक है।

खैर, सबसे अच्छी प्रतिक्रिया पतिदेव की थी। उन्होंने ख़ुशी से ब्लॉग खोला और पढ़ना  शुरू किया। पता है कैसे? अंग्रेजी में अनुवाद करके। कोहनी के दो-तीन वार खाने के बाद, मेरे बनावटी गुस्से पर मुस्कुराते हुए उन्होंने पूरा पोस्ट पढ़ा। उनका हिंदी प्रेम तो बच्चों से भी और गहरा है। :)

और कुछ न सही मुझे इस नयी पोस्ट के लिए विषय मिल गया।  

शुक्रवार, 12 जून 2015

एक नयी पहल

मेरा सपना था कि मैं हिन्दी जो की मेरी मातृभाषा है उसमें लिखूं। आज मुझे बेहद प्रसन्नता है कि इस दिशा में मैंने एक छोटा सा क़दम रख दिया है। मुझे हिन्दी में पढ़ने और लिखने का बेहद शौक है पर कहीं ना कहीं शायद समय की कमी या फिर मेरा ही आलस कहिए कि मैंने पहले हिन्दी मे लिखना प्रारंभ नहीं किया. हिन्दी मे पढ़ना तो खैर बहुत पहले छूट गया. आप लोगों से आशा करती हूँ कि कुछ हिन्दी की अच्छी पुस्तकों का सुझाव आप मुझे देंगे। वैसे तो मैंने एक पुस्तकालय कि सदस्यता ली हुयी है परंतु उनके पास हिन्दी की पुस्तकों का बहुत संकुचित संग्रह है।

पर चलो देर आए लेकिन दुरुस्त आए। आगाज़ तो हो गया हिन्दी में लेखन का। आगे इस सफ़र में क्या मुक़ाम आएँगे यह तो समय पर छोड़ देते हैं।

अभी तो मुझे हिन्दी मे टाइप करने मे अभ्यस्त होने मे थोड़ा समय लगेगा। जो पाठक हिन्दी मे लिखते हैं उनके सुझावों की मुझे आव्यश्यक्ता पड़ेगी और इंतेज़ार भी रहेगा कि वे कौन सा सॉफ्टवेर  लेखन के लिए सबसे उत्तम समझते हैं? क्या हिन्दी में अब पूर्णविराम का उपयोग बंद हो गया है?

आज के लिए बस इतना ही। जल्दी ही मिलेंगे एक ऐसी ही सुहावानी शाम में। शुभ रात्रि।