कितना अजीब है हिंदी में लेखन करना। बार बार देखना कि सही तरीके से लिखा है की नहीं, मात्राएँ ठीक हैं कि नहीं। :) जब मैंने अपना पहला ब्लॉग लिखा हिंदी में तो अगले दिन घर में सबको पढ़ने को कहा। मेरे छोटे बेटे ने पहले तो हैरत से पूछा की हिंदी में टाइप कैसे करते हैं? जब मैंने उसे दिखाया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। पर इतनी सारी पंक्तियों को देखकर उसने पढ़ने से सख्त इंकार कर दिया। जैसा कि आप लोग समझ ही गए होंगे की हिंदी उसका सर्वप्रिय विषय है। :) हिंदी में पढ़ना उसे बहुत कठिन लगता है।
बड़ा बेटा थोड़ा खीजा लेकिन उसने पूरा ब्लॉग पढ़ा। मैं सारे समय उसका उच्चारण सुधारती रही। मुझे लगता है कि अगली बार वह मेरे सामने पढ़ने की गलती नहीं करेगा। वैसे हिंदी उसका भी सर्वप्रिय विषय है। पता नहीं ये बच्चे अंग्रेजी के अलावा और किसी भाषा से उतना प्रेम क्यों नहीं करते। शायद बचपन से अंग्रेजी में पढ़ने और सोचने का अभ्यास ज़्यादा है। वैसे मैंने अपने दोनों ही बच्चों से हिंदी में ही शुरू से बात चीत की है ताकि वे हिंदी घर पर ही सीखें। दोनों ही हिंदी अच्छी तरह से बोल लेते हैं। दक्षिण भारत में रहने के कारण उनके कई हिंदी के अधयापकों का उच्चारण उतना शुद्ध नहीं है जो शायद उनकी भाषा में भी थोड़ा झलकता होगा। आप जहाँ रहते हैं, उस जगह की छाप आपकी बात चीत में होना स्वाभाविक है।
खैर, सबसे अच्छी प्रतिक्रिया पतिदेव की थी। उन्होंने ख़ुशी से ब्लॉग खोला और पढ़ना शुरू किया। पता है कैसे? अंग्रेजी में अनुवाद करके। कोहनी के दो-तीन वार खाने के बाद, मेरे बनावटी गुस्से पर मुस्कुराते हुए उन्होंने पूरा पोस्ट पढ़ा। उनका हिंदी प्रेम तो बच्चों से भी और गहरा है। :)
और कुछ न सही मुझे इस नयी पोस्ट के लिए विषय मिल गया।
बड़ा बेटा थोड़ा खीजा लेकिन उसने पूरा ब्लॉग पढ़ा। मैं सारे समय उसका उच्चारण सुधारती रही। मुझे लगता है कि अगली बार वह मेरे सामने पढ़ने की गलती नहीं करेगा। वैसे हिंदी उसका भी सर्वप्रिय विषय है। पता नहीं ये बच्चे अंग्रेजी के अलावा और किसी भाषा से उतना प्रेम क्यों नहीं करते। शायद बचपन से अंग्रेजी में पढ़ने और सोचने का अभ्यास ज़्यादा है। वैसे मैंने अपने दोनों ही बच्चों से हिंदी में ही शुरू से बात चीत की है ताकि वे हिंदी घर पर ही सीखें। दोनों ही हिंदी अच्छी तरह से बोल लेते हैं। दक्षिण भारत में रहने के कारण उनके कई हिंदी के अधयापकों का उच्चारण उतना शुद्ध नहीं है जो शायद उनकी भाषा में भी थोड़ा झलकता होगा। आप जहाँ रहते हैं, उस जगह की छाप आपकी बात चीत में होना स्वाभाविक है।
खैर, सबसे अच्छी प्रतिक्रिया पतिदेव की थी। उन्होंने ख़ुशी से ब्लॉग खोला और पढ़ना शुरू किया। पता है कैसे? अंग्रेजी में अनुवाद करके। कोहनी के दो-तीन वार खाने के बाद, मेरे बनावटी गुस्से पर मुस्कुराते हुए उन्होंने पूरा पोस्ट पढ़ा। उनका हिंदी प्रेम तो बच्चों से भी और गहरा है। :)
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